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भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की कार्य प्रणाली

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • परिवहन, पर्यटन और संस्कृति संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री वी. विजयसाई रेड्डी) ने 21 सितंबर, 2023 को 'भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की कार्य प्रणाली' पर अपनी रिपोर्ट पेश की। केंद्र सरकार द्वारा गठित भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों का रखरखाव करने वाला एक निकाय है। यह देश में पुरातात्विक गतिविधियों को भी रेगुलेट करता है। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
  • केंद्रीय स्तर पर संरक्षित स्मारकों की सूची का पुनर्गठन: केंद्रीय स्तर पर संरक्षित स्मारक राष्ट्रीय महत्व के स्मारक और पुरातात्विक स्थल होते हैं, जो संघ सूची में शामिल हैं और एएसआई के अधीन हैं। कमिटी ने कहा कि 3,691 केंद्रीय संरक्षित स्मारकों में से कम से कम एक चौथाई छोटे स्मारक हैं जिनका कोई पुरातात्विक या ऐतिहासिक महत्व नहीं है। उसने सुझाव दिया कि इन स्मारकों की सूची को राष्ट्रीय महत्व, अद्वितीय पुरातात्विक महत्व और विशिष्ट धरोहर के आधार पर पुनर्गठित किया जाए। उसने यह भी सुझाव दिया कि एएसआई उन सभी स्मारकों की बाह्य सुरक्षा सुनिश्चित करे, जिनका वह रखरखाव करता है। उसने कहा कि कर्मचारियों की कमी के कारण पर्याप्त सुरक्षा सुनिश्चित नहीं होती।
  • स्मारकों के इर्द-गिर्द प्रतिबंधित क्षेत्र: पुरातात्विक स्थलों के 300 मीटर के दायरे में निर्माण और खनन सहित विभिन्न गतिविधियां कानून के तहत प्रतिबंधित हैं। कमिटी ने कहा कि इसके कारण सार्वजनिक स्तर पर आलोचना होती है और असुविधा पैदा होती है क्योंकि कुछ मामलों में एक पूरा गांव इस दायरे में आता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि इन प्रतिबंधों को तर्कसंगत बनाया जाना चाहिए।
  • साइटों की खुदाई में कमियां: कमिटी ने कहा कि उत्खनन गतिविधियों से संबंधित कई मुद्दे अनसुलझे हैं। इनमें केंद्रीय स्तर पर उत्खनन गतिविधियों की निगरानी न होना, कार्य योजनाओं की कमी और अपर्याप्त बजट आवंटन शामिल हैं। उसने सुझाव दिया कि खुदाई शुरू करने से पहले संरक्षण की योजनाएं विकसित की जाएं ताकि साइट की अखंडता (इंटेग्रिटी) पर कम से कम असर हो। उसने सुझाव दिया कि सटीकता के लिए 3डी स्कैनिंग जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग किया जाना चाहिए।
  • मरम्मत से संबंधित मुद्दे: कमिटी ने कहा कि कुछ साइट्स पर मरम्मत उस स्थान के मूल डिजाइन के अनुरूप नहीं है। उसने एएसआई को स्मारकों की मूल संरचना को बनाए रखने का सुझाव दिया। इसके अलावा उसे मरम्मत की योजनाओं में जलवायु अनुकूल रणनीतियों को इस्तेमाल करना चाहिए। उसने एएसआई को नियमित रूप से साइटों की स्थिति का आकलन करने के लिए एक निगरानी प्रणाली लागू करने का भी सुझाव दिया। इससे सक्रिय रखरखाव संभव हो सकेगा।
  • डॉक्यूमेंटेशन की धीमी गति: कमिटी ने कहा कि कुल 58 लाख पुरावशेषों में से केवल 16.8 लाख को राष्ट्रीय स्मारक और पुरावशेष मिशन (एनएमएमए) के तहत अब तक डॉक्यूमेंट किया गया है। विरासत स्थलों और पुरावशेषों पर एक डेटाबेस बनाने के लिए एनएमएमए को शुरू किया गया है। कमिटी ने सुझाव दिया कि एनएमएमए इस प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए क्षमता निर्माण में निवेश करे।
  • एएसआई में रिक्तियां और पुनर्संरचना: कमिटी ने कहा कि एएसआई में लगभग 31% पद रिक्त हैं। उसने कहा है कि रिक्तियों के कारण विभिन्न कार्यों को पूरा करने में देरी और बाधाएं आती हैं। उसने यह सुझाव भी दिया कि एएसआई का पुनर्गठन किया जाना चाहिए। उसने एएसआई को दो प्रभागों में विभाजित करने का सुझाव दिया- एएसआई विंग और इंडिया हेरिटेज डेवलपमेंट कॉरपोरेशन विंग (आईएचडीसी)। एएसआई विंग अन्वेषण, संरक्षण और उत्खनन का मुख्य कार्य करेगा। आईएचडीसी स्मारकों और स्थलों के प्रबंधन से निपटेगा, जिसमें लाइसेंसिंग, टिकटिंग, सुरक्षा और अन्य पर्यटक-संबंधी कामकाज शामिल हैं।
  • निजी इकाइयों की भागीदारी: कमिटी ने कहा कि स्मारक मित्र योजना के तहत, 24 समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए हैं, हालांकि केवल चार में प्रभावी भागीदारी देखी गई है। इस योजना के तहत निजी संस्थाएं विरासत स्थलों की मरम्मत और उनका रखरखाव कर सकती हैं। उसने सुझाव दिया कि एएसआई को कला और संस्कृति के संरक्षण में सार्वजनिक-निजी भागीदारी और कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी संबंधी पहल को बढ़ावा देना चाहिए।
  • अतिक्रमण से निपटना: कमिटी ने सुझाव दिया कि एएसआई को स्मारकों के आसपास अतिक्रमण का नियमित सर्वेक्षण करना चाहिए और उसका एक डेटाबेस तैयार करना चाहिए। इसके अलावा कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव भी दिए: (i) अतिक्रमण से निपटने में सहयोग हेतु स्थानीय समुदायों को हितधारकों के रूप में शामिल करना, और (ii) बेदखली से प्रभावित परिवारों और व्यक्तियों को सहायता प्रदान करना।
     

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (“पीआरएस”) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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