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फिशरीज़ क्षेत्र में रोजगार सृजन और राजस्व अर्जन क्षमता

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री पी.सी. गद्दीगौदर) ने 7 फरवरी, 2024 को 'फिशरीज़ क्षेत्र के रोजगार सृजन और राजस्व अर्जन क्षमता' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • फिशरीज़ क्षेत्र में रोजगार सृजन: फिशरीज़ क्षेत्र में नौकरियां उत्पादन और इनपुट की बिक्री, मछली पकड़ने, मछली-पालन, प्रसंस्करण से लेकर मार्केटिंग और वितरण तक होती हैं। ये अनौपचारिक, छोटे पैमाने की हो सकती हैं या उच्च स्तरीय संगठित और उद्योगों का संचालन तक हो सकती हैं। पीएम मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत मत्स्य पालन विभाग का लक्ष्य 2024-25 तक 55 लाख नौकरियां पैदा करना है। कमिटी ने सुझाव दिया कि रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए निर्यात, मछली पकड़ने के बाद उनके प्रसंस्करण और आयात प्रतिस्थापन जैसे क्षेत्रों में निवेश बढ़ाया जाना चाहिए।

  • फिशरीज़ उद्योग: फिशरीज़ कृषि क्षेत्र के सकल मूल्य वर्धन में 6.7% का योगदान देता है और लगभग 28 मिलियन लोगों को सीधे तौर से रोजगार देता है। कमिटी ने क्षेत्र की विकास क्षमता और सरकारी राजस्व में इसके संभावित योगदान पर गौर किया। 2015-16 और 2020-21 के दौरान इस क्षेत्र में 9% की वृद्धि हुई (स्थिर कीमतों पर)। मछली प्रोटीन का एक सस्ता स्रोत है, और खाद्य सुरक्षा में भी योगदान देती है। पीएमएमएसवाई के तहत, केंद्र सरकार ने 2025 तक 22 मिलियन मीट्रिक टन मछली उत्पादन का लक्ष्य रखा है। वर्तमान में, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) राष्ट्रीय मत्स्य अनुसंधान भी करती है। कमिटी ने सुझाव दिया कि इस क्षेत्र के महत्व को देखते हुए एक अलग अनुसंधान परिषद का गठन किया जाना चाहिए।

  • संरक्षण के उपाय: अत्यधिक मछली पकड़ने, प्रदूषण, बीमारी फैलने, पर्यावास के नष्ट होने और जलवायु परिवर्तन के कारण फिशरीज़ क्षेत्र के अस्थिर होने का खतरा है। कमिटी ने सुझाव दिया कि मछलियों की महत्वपूर्ण प्रजातियों का प्रजनन और प्रसार सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इसके लिए उपयुक्त हैचरी इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित किए जा सकते हैं। मछलियों की इंडियन ऑयल सार्डिन जैसी कई प्रजातियां घट रही हैं। छोटी मछलियों को नुकसान मुख्यतः तब होता है जब वे संयोगवश बड़े ट्रॉलों में फंस जाती हैं। फिश मील और फिश ऑयल उद्योग फिशिंग के लिए बुल ट्रॉलिंग और एलईडी लाइट्स का इस्तेमाल करता है और इनके कारण बड़े नुकसान होते हैं। इन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। कमिटी ने सुझाव दिया कि मछलियां पकड़ने के लिए प्रतिबंधित पद्धतियों की रोकथाम हेतु एक तंत्र तैयार किया जाए।

  • प्रजनन बढ़ाने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास: कमिटी ने कहा कि जहां कुछ मछलियों के बड़े पैमाने पर पकड़े जाने का खतरा है, वहीं कुछ मछलियों का वाणिज्यिक प्रजनन कम होता है। ये प्रजातियां मगुर, सिंघी, पाब्दा और कोई हैं। कमिटी ने कहा कि ऐसा पर्याप्त हैचरी इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के कारण हो सकता है, और ऐसे इंफ्रास्ट्रक्चर को स्थापित करने का सुझाव दिया। केज कल्चर एक एक्वाकल्चर प्रोडक्शन प्रणाली है जहां मछलियों को फ्लोटिंग नेट पैन में रखा जाता है। भारत में लगभग 5,700 बड़े बांध और कई छोटे और मध्यम जलाशय हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि इनका उपयोग मछली उत्पादन को बढ़ाने के लिए किया जाना चाहिए।

  • अंतरराष्ट्रीय व्यापार: एल. वेनामे श्रिंप भारत के सीफूड निर्यात का लगभग 90-95% है। हालांकि श्रिंप के मदर स्टॉक का आयात किया जाता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि मदर स्टॉक को देश में तत्काल उत्पादित किया जाए। उसने एक प्रजाति पर निर्भरता को कम करने और पी. मोडोनन और पी. इंडिकस जैसी अन्य प्रजातियों में विविधता लाने का भी सुझाव दिया। उसने इन प्रजातियों के लिए मौजूदा जीन सुधार और न्यूक्लियस प्रजनन परियोजनाओं की फास्ट ट्रैकिंग का सुझाव दिया। इससे भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार की उम्मीद है। कमिटी ने यह भी कहा कि रोग प्रबंधन और फिश प्रॉड्यूस की ट्रेसेबिलिटी के लिए पहल की जानी चाहिए, ताकि क्षेत्र की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार किया जा सके।

  • इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड का प्रदर्शन: कमिटी ने कहा कि निजी क्षेत्र फिशरीज़ एंड एक्वाकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड का इस्तेमाल नहीं करता क्योंकि यह सिर्फ ब्याज छूट प्रदान करता है। वर्तमान में यह उन ऋणों के लिए 3% ब्याज छूट प्रदान करता है जिनकी ब्याज दरें 5% से अधिक हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि विभाग को मंजूरी की प्रक्रिया को आसान बनाना चाहिए। कमिटी ने सुझाव दिया कि किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से दिए जाने वाले ऋण पर शून्य ब्याज दर की संभावना तलाशी जाए। मौजूदा ब्याज दर 7% है, जिस पर केंद्र सरकार 3% की छूट देती है।

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (“पीआरएस”) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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