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न्यायिक प्रक्रियाएं और उनमें सुधार

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • कार्मिक, लोक शिकायत और कानून एवं न्याय संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री सुशील कुमार मोदी) ने 7 अगस्त, 2023 को "न्यायिक प्रक्रियाएं और उनमें सुधार" पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • सर्वोच्च न्यायालय की क्षेत्रीय पीठ: कमिटी ने गौर किया कि सर्वोच्च न्यायालय के दिल्ली में केंद्रित होने की वजह से देश के दूर-दराज इलाकों से आने वाले वादियों के लिए कठिनाइयां पैदा होती है। कमिटी ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय की क्षेत्रीय पीठ स्थापित करने की मांग न्याय तक पहुंच के मौलिक अधिकार पर आधारित है। संविधान के अनुच्छेद 130 के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय दिल्ली में या ऐसे किसी अन्य स्थान पर बैठेगी, जिसे राष्ट्रपति की मंजूरी से भारत के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त कर सकते हैं। कमिटी ने सर्वोच्च न्यायालय की क्षेत्रीय पीठों की स्थापना का सुझाव दिया। उसने कहा कि चार या पांच स्थानों पर क्षेत्रीय पीठ स्थापित करने के लिए अनुच्छेद 130 का इस्तेमाल किया जा सकता है। उसने सुझाव दिया कि क्षेत्रीय पीठ अपीलीय मामलों पर निर्णय ले सकती हैं, जबकि संवैधानिक मामलों को दिल्ली में निपटाया जा सकता है।

  • न्यायाधीशों की नियुक्ति में सामाजिक विविधता: कमिटी ने गौर किया कि उच्च न्यायपालिका (सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय) में विविधता की कमी है। उसने कहा कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, महिलाओं और अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व वांछित स्तर से काफी कम है और यह भारत की सामाजिक विविधता को प्रतिबिंबित नहीं करता। उदाहरण के लिए, 2018 के बाद से उच्च न्यायालय में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के न्यायाधीशों की नियुक्ति का प्रतिशत क्रमशः 3% और 1.5% था। इसके अलावा कमिटी ने कहा कि उच्च न्यायपालिका की न्यायिक नियुक्तियों में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। उसने सुझाव दिया कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के कॉलेजियम को अल्पसंख्यकों सहित हाशिए पर धकेले गए समुदायों से पर्याप्त संख्या में महिला और पुरुष उम्मीदवारों की सिफारिश करनी चाहिए। उसने सुझाव दिया कि न्याय विभाग वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में सेवारत न्यायाधीशों की सामाजिक स्थिति के आंकड़े एकत्र करे।

  • न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु: कमिटी ने कहा कि चिकित्सा विज्ञान में प्रगति और दीर्घ जीवन के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाए जाने की आवश्यकता है। वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए सेवानिवृत्ति की आयु क्रमशः 65 और 62 वर्ष है। उसने सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने और संविधान के प्रासंगिक अनुच्छेदों में संशोधन करने का सुझाव दिया। इसके अतिरिक्त न्यायाधीशों के कार्यकाल को बढ़ाने से पहले सर्वोच्च न्यायालय का कॉलेजियम उनके प्रदर्शन और स्वास्थ्य का मूल्यांकन करने के लिए एक प्रणाली विकसित कर सकता है।

  • संपत्ति की अनिवार्य घोषणा: कमिटी ने कहा कि परंपरा के तौर पर सभी संवैधानिक पदाधिकारियों और सरकारी सेवकों को अपनी संपत्ति और देनदारियों का वार्षिक रिटर्न दाखिल करना होता है। हालांकि न्यायाधीशों को अपनी संपत्ति और देनदारियों का खुलासा करने की आवश्यकता नहीं होती। कमिटी ने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार एक कानून लाए जिसके तहत उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों के लिए हर साल अपनी संपत्ति का रिटर्न एक उचित अथॉरिटी में दाखिल करना अनिवार्य हो।

  • सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय में अवकाश: कमिटी ने कहा कि पूरी अदालत के एक साथ अवकाश पर चले जाने से उच्च न्यायपालिका प्रति वर्ष कुछ महीनों के लिए बंद हो जाती है। उसने कहा कि अदालतों में छुट्टियों को खत्म करने की मांग निम्नलिखित कारणों से की जा रही है: (i) मामलों का लंबित होना, और (ii) वादियों को होने वाली असुविधा। उदाहरण के लिए कमिटी ने कहा कि उच्च न्यायालयों में 60 लाख से अधिक मामले लंबित हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि सभी न्यायाधीशों को एक साथ छुट्टी पर जाने की बजाय, अलग-अलग न्यायाधीशों को पूरे वर्ष में अलग-अलग समय पर छुट्टी लेनी चाहिए।

  • उच्च न्यायालयों की वार्षिक रिपोर्ट: कमिटी ने वार्षिक रिपोर्ट के प्रकाशन की तुलना पिछले वर्ष के दौरान संस्थान के प्रदर्शन के आकलन से की। वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय अपनी वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित करता है जिसमें सभी उच्च न्यायालयों द्वारा किए गए कार्यों को भी दर्शाया जाता है। कमिटी ने गौर किया कि केवल कुछ उच्च न्यायालय ही अपनी वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित कर रहे हैं। उसने न्याय विभाग से कहा कि वह सर्वोच्च न्यायालय को इस संबंध में एक प्रस्ताव दे। वह सर्वोच्च न्यायालय से कहे कि वह सभी उच्च न्यायालयों को अपनी वार्षिक रिपोर्ट तैयार करने और उन्हें प्रकाशित करने का निर्देश जारी करे। 

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (“पीआरएस”) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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