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रोड ओवर ब्रिज, रोड अंडर ब्रिज, सर्विस रोड का निर्माण और सड़क सर्वेक्षण दिशानिर्देशों की समीक्षा

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • परिवहन, पर्यटन और संस्कृति संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री वी. विजयसाई रेड्डी) ने 10 अगस्त, 2023 को 'रोड ओवर ब्रिज, रोड अंडर ब्रिज, सर्विस रोड का निर्माण और सड़क सर्वेक्षण दिशानिर्देशों की समीक्षा' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। रोड ओवर ब्रिज (आरओबी) और रोड अंडर ब्रिज (आरयूबी) ऐसी संरचनाएं होती हैं जो सड़क और रेल यातायात को अलग करती हैं। आरओबी में रेलवे ट्रैक के ऊपर ऊंचाई पर सड़क बनी होती है, जबकि आरयूबी में सड़क ट्रैक के नीचे से होकर गुजरती है। कमिटी के प्रमुख निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • आरओबी और आरयूपी का निर्माण: लेवल क्रॉसिंग (एलसी) रेलवे ट्रैक और सड़कों के बीच का इंटरसेक्शन होता है जिससे वाहनों और ट्रेनों के बीच टकराव का खतरा होता है। 2016 में लॉन्च होने के बाद से सेतु भारतम कार्यक्रम, जिसका उद्देश्य आरओबी/आरयूबी का निर्माण है, ने सिर्फ 25% काम पूरा किया है। कमिटी ने कहा कि 2023-24 में 1,100 एलसी का रिप्लेसमेंट, पिछले दशक के वार्षिक औसत से कम है। उसने सुझाव दिया कि आरओबी/आरयूबी के साथ एलसी के रिप्लेसमेंट के लक्ष्य और गति को बढ़ाया जाना चाहिए। उसने मंत्रालय को अधिक धन आवंटित करने और आरओबी/आरयूबी के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल की व्यावहारिकता का आकलन करने का भी सुझाव दिया।

  • निर्माण में विलंब: रेल मंत्रालय ने निम्नलिखित कारणों से आरओबी/आरयूबी के निर्माण में देरी का हवाला दिया: (i) पर्यावरणीय मंजूरी, (ii) भूमि अधिग्रहण, और (iii) प्रपोज़ल ड्राइंग्स पेश करने में देरी। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने ड्राइंग्स को ऑनलाइन पेश करने और हर 15 दिन में क्षेत्रीय समन्वय बैठक आयोजित करने की अनुमति देकर वन मंजूरी की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया है। कमिटी ने सुझाव दिया कि रेल मंत्रालय और सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए पर्यावरण मंत्रालय के साथ नियमित रूप से समन्वय करना चाहिए।

  • अनुबंध प्रबंधन: कमिटी ने अनुबंध प्रबंधन के मुद्दों पर गौर किया जैसे बातचीत की गई दरों को अंतिम रूप देने में देरी और खराब प्रगति के बावजूद विस्तार देना। उसने मंत्रालय को प्राथमिकता के आधार पर इस मुद्दे की जांच करने और अनुबंध शर्तों में प्रदर्शन प्रोत्साहन और दंड को शामिल करने का सुझाव दिया। उसने अनुबंधों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए सक्षम अनुबंध प्रबंधकों को नियुक्ति का भी सुझाव दिया।

  • अंतर-मंत्रालयी समन्वय तंत्र: रेल मंत्रालय के अनुसार, अंतर-मंत्रालयी समन्वय की कमी के कारण भी परियोजना में देरी होती है। कमिटी ने सड़क परिवहन एवं राजमार्ग, वित्त, पर्यावरण, वन, जलवायु परिवर्तन और रेलवे जैसे प्रमुख मंत्रालयों के बीच समन्वय बढ़ाने के लिए एक केंद्रीय समन्वय निकाय और सूचना-साझाकरण तंत्र बनाने का सुझाव दिया।

  • डिजाइन से संबंधित मुद्दे: भूमि अधिग्रहण में देरी के कारण सर्विस रोड्स टूट गई हैं, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ता है क्योंकि वाहनों को बिना रुकावट यात्रा के लिए राजमार्ग पर दाखिल होने के लिए मजबूर होना पड़ता है। कमिटी ने कहा कि मर्जिंग और डायवर्जिंग प्वाइंट्स मार्ग परिवर्तन के लिए अहम होते हैं जहां वाहन मुख्य यातायात प्रवाह में शामिल होते हैं या उससे बाहर निकलते हैं। उसने स्थानीय यातायात को ध्यान में रखते हुए सड़कों को डिजाइन करने का सुझाव दिया जिसमें मर्जिंग लेन्स, एसेलरेशन, डिसेलरेशन जोन्स और स्पष्ट साइनेज शामिल हैं।

  • निरीक्षण और कार्यान्वयन के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग: मानक संचालन प्रक्रिया के अनुसार ब्रिज हेल्थ मॉनिटरिंग सिस्टम और सामग्री गुणवत्ता परीक्षण जैसे उपायों का उपयोग करके समस्या की पहचान के लिए साइट इंजीनियरों द्वारा नियमित निरीक्षण किया जाता है। कमिटी ने निरीक्षण और कार्यान्वयन के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकियों को अपनाने का सुझाव दिया। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले कैमरे और सेंसर वाले ड्रोन, (ii) 3डी मॉडल तैयार करने के लिए लेजर स्कैनिंग उपकरण, और (iii) संरचनात्मक प्रदर्शन की निगरानी के लिए संरचनात्मक हेल्थ मॉनिटरिंग सिस्टम्स।

  • स़ड़क निर्माण परियोजनाओं में सामुदायिक भागीदारी: "सड़क परियोजनाओं के सर्वेक्षण, जांच और तैयारी के लिए मैनुअल" में भारत में सर्वेक्षण, जांच और सड़क परियोजनाओं की तैयारी के लिए विस्तृत निर्देश दिए गए हैं। कमिटी ने कहा कि दिशानिर्देशों में सामुदायिक भागीदारी के तत्वों पर जोर नहीं दिया गया है, जो महत्वपूर्ण है क्योंकि सड़कें समुदायों की जरूरतों को पूरा करती हैं। उसने इन तत्वों को दिशानिर्देशों में शामिल करने का सुझाव दिया।

  • क्षमता निर्माण: कमिटी ने कर्मचारियों की कमी के मुद्दे पर गौर किया। उसने संगठनात्मक पुनर्गठन और नीतियों को फिर से तैयार करने जैसे क्षमता-निर्माण कदमों का सुझाव दिया।

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (“पीआरएस”) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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