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रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • रक्षा संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री जुआल ओरम) ने 20 दिसंबर, 2023 को 'रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के कामकाज की समीक्षा' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। डीआरडीओ सशस्त्र सेनाओं के लिए स्वदेशी रक्षा प्रणालियों के विकास का काम करता है। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • अनुसंधान का बजट: कमिटी ने कहा कि पिछले दो वर्षों में रक्षा विभाग ने अनुसंधान और विकास के लिए जितनी राशि की मांग की थी, आवंटित राशि उससे कम रही है। कुल रक्षा व्यय में डीआरडीओ के व्यय का हिस्सा भी लगातार कम हुआ है। कमिटी ने सुझाव दिया कि अनुसंधान और विकास के लिए डीआरडीओ को पर्याप्त धन उपलब्ध कराया जाना चाहिए। अगर भारत को विश्व में लड़ाई के साजो-सामान यानी आर्मामेंट और हथियार प्रणालियों में अगुवाई करनी है तो डीआरडीओ के बजटीय अनुदान को बढ़ाया जाना चाहिए। कमिटी ने डीआरडीओ में मौजूदा अनुसंधान और विकास गतिविधियों के लिए धन के उपयोग के संबंध में संदेह जताया। उसने कहा कि जब सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा उपक्रम अपग्रेड्स के लिए डीआरडीओ से संपर्क करते हैं, तो उनके पास अनुसंधान और विकास के लिए इन-हाउस केंद्र भी होने चाहिए।

  • लंबित परियोजनाएं: कमिटी ने चिंता व्यक्त की कि 55 परियोजनाओं में से 23 समय पर पूरी नहीं हो सकीं। कमिटी ने यह भी कहा कि पहले भी डीआरडीओ की कई परियोजनाएं समय और लागत बढ़ने से प्रभावित हुई हैं। गुणात्मक आवश्यकताओं में परिवर्तन या तकनीकी रूप से अप्रचलित होने के कारण कुछ परियोजनाएं बंद भी कर दी गईं। डीआरडीओ के अनुसार, परियोजनाओं के बंद होने के कारणों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) अप्रत्याशित तकनीकी जटिलताएं, (ii) तकनीकी नामंजूरियां, और (iii) पूंजीगत उपकरणों की कीमतों का बढ़ना। कमिटी ने कहा कि परियोजनाओं की विभिन्न चरणों में समीक्षा की जा रही थी लेकिन इसके बावजूद उन्हें बंद कर दिया गया। उसने सुझाव दिया कि समीक्षा की पद्धति पर दोबारा विचार किया जाए क्योंकि कुछ मामलों में इनके कारण ही देरी होती है। इन समीक्षाओं में तकनीकी कर्मचारियों और मानक मानदंडों को शामिल किया जाना चाहिए ताकि देरी और लागत वृद्धि से बचा जा सके।

  • स्वदेशीकरण: डीआरडीओ दूसरे इनपुट्स के साथ-साथ उभरते खतरे के आधार पर नई तकनीक और सिस्टम्स को विकसित करने के लिए परियोजनाएं शुरू करता है। हालांकि भारत अभी भी मिलिट्री प्लेटफॉर्म्स के लिए विदेशों पर निर्भर है। स्वदेशीकरण की वर्तमान दर को देखते हुए भारत अगले 10 वर्षों में 80%-90% स्वदेशीकरण हासिल कर सकता है। कमिटी ने कहा कि आयातित हथियार प्रणालियों पर निरंतर निर्भरता मेक इन इंडिया पहल को हतोत्साहित कर सकती है। उसने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) रक्षा योजना में अधिक पेशेवर रवैया, (ii) अनुसंधान और विकास का प्रबंधन, और (iii) आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता।

  • कर्मचारियों का प्रशिक्षण: डीआरडीओ अनुसंधान और विकास तथा इंजीनियरिंग कौशल में कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने के लिए लगातार नए प्रशिक्षण मॉड्यूल शुरू करता रहता है। प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ तालमेल बनाए रखने हेतु वैज्ञानिकों के लिए एक लक्षित प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किया गया है। कमिटी ने सुझाव दिया कि डीआरडीओ को अपने अधिकारियों को प्रशिक्षण दिलाने के लिए विश्वविद्यालयों और संस्थानों के साथ सहयोग करना चाहिए।

  • इंफ्रास्ट्रक्चर विकास: डीआरडीओ ने उच्च तकनीकी इंफ्रास्ट्रक्चर केंद्र स्थापित किए हैं। ऐसे अधिकांश केंद्र भारतीय उद्योगों की सक्रिय भागीदारी से स्थापित किए गए हैं। डीआरडीओ द्वारा उद्योगों को परीक्षण सुविधाएं भी उपलब्ध कराई गई हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि डीआरडीओ को व्यापक इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण के लिए उद्योग संघ के साथ जुड़ना चाहिए। इससे यह सुनिश्चित होगा कि डीआरडीओ निर्मित सिस्टम्स भविष्य के लिए तैयार हो जाएं।

  • उभरती हुई तकनीक: भारत भर में डीआरडीओ की सात तकनीकी क्लस्टर प्रयोगशालाएं हैं। ये प्रयोगशालाएं देश की महत्वपूर्ण रक्षा आवश्यकताओं से संबंधित तकनीक विकसित करती हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि डीआरडीओ को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रोबोटिक्स जैसे टेक्नोलॉजी एप्लिकेशंस के नए और उभरते हुए क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उसने प्रमुख तकनीकी संस्थानों में अनुसंधान प्रयोगशालाएं स्थापित करने का भी सुझाव दिया। यह रक्षा तकनीक में रुचि रखने वाले विद्यार्थियों को प्रेरित कर सकता है और डीआरडीओ को शुरुआती चरण में युवा वैज्ञानिकों तक पहुंचने में मदद कर सकता है।

  • ड्रोन क्षमताएं: युद्ध में ड्रोन तेजी से महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं। डीआरडीओ उपयोगकर्ता एजेंसियों की आवश्यकताओं के आधार पर ड्रोन-आधारित सिस्टम्स और एंटी-ड्रोन सिस्टम्स विकसित कर रहा है। कमिटी ने कहा कि तकनीक विकसित करने के बाद इसे स्थापित निजी उद्योगों और उभरते उद्यमों को हस्तांतरित किया जा सकता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि डीआरडीओ को इंटरसेप्टिव ड्रोन और समुद्री ड्रोन क्षमताओं को विकसित करने पर ध्यान देना चाहिए। उसने यह भी कहा कि नई पीढ़ी के ड्रोन लिथियम-आयन बैटरी से संचालित होते हैं जो भारत में उपलब्ध नहीं है। कमिटी ने सुझाव दिया कि डीआरडीओ को आवश्यक बैटरी सेल को एक मिशन मोड परियोजना के रूप में विकसित करना चाहिए। इससे समयबद्ध तरीके से ड्रोन और एंटी-ड्रोन का विकास संभव हो सकेगा।

  • तकनीकी विकास कोष: तकनीकी विकास कोष का उद्देश्य रक्षा और दोहरे उपयोग वाली तकनीक का विकास करना है। सार्वजनिक और निजी उद्योग को अनुदान के माध्यम से वित्त पोषण प्रदान किया जाता है जिसकी अधिकतम सीमा प्रति परियोजना 10 करोड़ रुपए है। कमिटी ने सुझाव दिया कि इस धनराशि से ऐसी तकनीक को विकसित किया जाना चाहिए जिनका उपयोग रक्षा उपकरणों और प्लेटफार्मों में किया जा सके।

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (“पीआरएस”) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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