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मेडिकल उपकरण: रेगुलेशन और नियंत्रण

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश 

  • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री राम गोपाल यादव) ने 12 सितंबर, 2022 को ‘मेडिकल उपकरण: रेगुलेशन और नियंत्रण’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं:

  • घरेलू निर्माण: मेडिकल उपकरणों की 80% जरूरत को आयात के जरिए पूरा किया जाता है। कमिटी ने कहा कि भारतीय मेडिकल उपकरण उद्योग अनेक प्रकार की चुनौतियों का सामना कर रहा है, जैसे: (i) अपर्याप्त स्वदेशी अनुसंधान और विकास (आरएंडडी), (ii) क्वालिफाइड मैनपावर की कमी, (iii) वित्त उपलब्ध न होना, और (iv) निर्माण की उच्च लागत। उसने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) सरकारी खरीद में घरेलू स्तर पर निर्मित उत्पादों के लिए इनसेंटिव देना, (ii) मेडिकल उपकरणों में आरएंडडी करने वाले स्टार्टअप्स के लिए फार्मास्युटिकल विभाग डेडिकेटेड कॉरपस बनाए, और (iii) आरएंडडी को बढ़ावा देने वाले शिक्षण संस्थानों के लिए रिसर्च लिंक्ड इनसेंटिव योजना शुरू की जाए। 

  • कमिटी ने कहा कि भारत में मेडिकल उपकरणों के निर्माण में भारी वृद्धि की संभावनाएं हैं। उसने मेडिकल उपकरण पार्क्स की कार्यकुशलता बढ़ाने के लिए कई उपायों का सुझाव दिया। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) दक्ष और अदक्ष लोगों के लिए डेडिकेटेड कार्यालय, (ii) अपशिष्ट उपचार संयंत्र, और (iii) सबसिडीयुक्त बिजली और पानी। इनमें से कुछ पार्क्स को मेडिकल उपकरणों के कंपोनेंट्स बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए ताकि भारत अन्य देशों के लिए मेडिकल उपकरणों के स्पेयर पार्ट्स का हॉटस्पॉट और रीपेयरिंग और सर्विस सेंटर बन सके। 

  • मेडिकल उपकरण मुख्य रूप से आयात किए जाते हैं: इसके मुख्य कारण हैं: (i) हाई-एंड तकनीक की कमी, और (ii) कच्चे माल की अनुपलब्धता। सीटी स्कैनर, एमआरआई, अल्ट्रासाउंड और एक्स-रे मशीनों जैसे हाई-एंड तकनीक वाले सेगमेंट्स का आयात किया जाता है। घरेलू स्तर पर निर्माण की तुलना में आयात सस्ता होता है क्योंकि आयात शुल्क कम है, जबकि निर्मित होने वाली वस्तुओं पर 12% जीएसटी लगता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि मैन्यूफैक्चरिंग संयंत्र लगाने के लिए इस्तेमाल होने वाली मशीनरी के आयात पर उत्पाद शुल्क घटाया जाए। 

  • टेस्टिंग इंफ्रास्ट्रक्चर पूरा नहीं है: कमिटी ने कहा कि देश में केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) द्वारा अनुमोदित मान्यता प्राप्त मेडिकल उपकऱण जांच प्रयोगशालाएं सिर्फ 18 हैं। उसने सुझाव दिया कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में स्थानीय निर्माताओं के लिए मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाएं बनाई जाएं ताकि वे अपने उत्पादों की मानकों के आधार पर जांच कर सकें। 

  • भारतीय गुणवत्ता परिषद की भूमिका: भारतीय मेडिकल उपकरण उद्योग में अंतरराष्ट्रीय मानकों की तुलना में उपकरणों को उत्पादित करने वाली सुविधाओं की कमी है। कमिटी ने कहा कि भारतीय गुणवत्ता परिषद गुणवत्ता के नियमों को स्थापित करने में योगदान दे सकती है और यह सुनिश्चित कर सकती है कि भारत में निर्मित उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय मानकों की तुलना में प्रतिस्पर्धात्मक लाभ मिले। उसने सुझाव दिया कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप मानकों और प्रमाणन प्रक्रियाओं को पेश करे। जब तक ऐसे मानक लागू नहीं हो जाते, तब तक मंत्रालय को स्थानीय निर्माताओं को वित्तीय सहायता देनी चाहिए ताकि वे अंतरराष्ट्रीय रेगुलेशंस का अनुपालन करने के लिए अपना क्षमता निर्माण कर सकें, चूंकि सर्टिफिकेशन की प्रक्रिया महंगी होती है। इसके अतिरिक्त भारतीय मानक ब्यूरो मेडिकल उपकरणों के लिए विश्व स्तर पर स्वीकृत गुणवत्ता मानकों के साथ भारतीय मानकों का सामंजस्य स्थापित करता है।

  • उद्योग का रेगुलेटरी फ्रेमवर्क: इस समय मेडिकल उपकरणों को ड्रग्स और कॉस्मैटिक्स एक्ट, 1940 के तहत ड्रग्स के तौर पर रेगुलेट किया जाता है। मेडिकल उपकरण नियम, 2017 में मेडिकल उपकऱणों को रेगुलेट करने वाले प्रावधान हैं। इन नियमों का दायरा सिर्फ उन मेडिकल उपकरणों तक सीमित है जिन्हें सरकार ‘ड्रग्स’ के रूप में अधिसूचित करती है। कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) मेडिकल उपकरणों के लिए अलग से कानून बनाना, और (ii) राष्ट्रीय मेडिकल उपकरण आयोग बनाना जो इस उद्योग के सभी पहलुओं की जांच करे।

  • सीडीएससीओ मेडिकल उपकरणों और फार्मास्यूटिकल्स के लिए राष्ट्रीय स्तर की रेगुलेटिंग अथॉरिटी है। इसे मूल रूप से फार्मास्यूटिकल्स को रेगुलेट करने के लिए गठित किया गया था और 2017 में इसके मैंडेट में मेडिकल उपकरणों को लाया गया। कमिटी ने कहा कि सीडीएससीओ अपने मौजूदा रूप में मेडिकल उद्योग को प्रभावी ढंग से रेगुलेट नहीं कर पा रहा है, और उसने सुझाव दिया कि मेडिकल उपकरणों को रेगुलेट करने के लिए तकनीकी रूप से कुशल रेगुलेटर होने चाहिए। 

  • कीमतों का रेगुलेशन: राष्ट्रीय फार्मास्युटिकल मूल्य निर्धारण अथॉरिटी गैर-आवश्यक मेडिकल उपकरणों के मूल्य पर निगरानी रखती है और मूल्यों में 10% की वार्षिक वृद्धि की अनुमति देती है। कमिटी ने सुझाव दिया कि क्रिटिकल केयर के लिए जरूरी मेडिकल उपकरणों को अधिसूचित किया जाए और उन्हें आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची में रखा जाए। उसने निम्नलिखित सुझाव भी दिए: (i) मूल्य निर्धारण लागत और गुणवत्ता के विचार पर आधारित हो, और (ii) जब तक इनोवेशन और आरएंडडी के लिए इकोसिस्टम तैयार नहीं हो जाता, तब तक मंत्रालय कीमतों में छूट, मूल्य-आधारित खरीद और घरेलू निर्माताओं के लिए सब्सिडी जारी रखे। 

  • कमिटी ने यह भी कहा कि कई कंपनियां अनुचित कीमतें वसूल रही हैं और विभाग को सुझाव दिया कि वह ट्रेड मार्जिन रैशनलाइजेशन नीति को लागू करे। इससे आयातकों की मनमानी कीमतों पर रोक लगने और परिवारों के लिए आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय के कम होने की संभावना है।   

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (“पीआरएस”) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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