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  • मौजूदा और नए राष्ट्रीय अंतर्देशीय जलमार्गों का विकास और विस्तार

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मौजूदा और नए राष्ट्रीय अंतर्देशीय जलमार्गों का विकास और विस्तार

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • परिवहन, पर्यटन और संस्कृति संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री वी. विजयसाई रेड्डी) ने 21 सितंबर, 2023 को 'मौजूदा और नए राष्ट्रीय अंतर्देशीय जलमार्गों का विकास और विस्तार' पर अपनी रिपोर्ट पेश की। अंतर्देशीय जलमार्ग एक नौगम्य (नेविगेबल) नदी और नहर प्रणाली होती है। भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई) अंतर्देशीय शिपिंग और नेविगेशन के लिए राष्ट्रीय जलमार्गों को रेगुलेट और विकसित करता है। कमिटी के प्रमुख निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
  • राष्ट्रीय जलमार्गों का परिचालन: देश में 111 अधिसूचित राष्ट्रीय जलमार्ग हैं जिनमें से 23 को चालू कर दिया गया है। बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय ने कहा है कि वित्तीय और कर्मचारियों की कमी के कारण 63 राष्ट्रीय जलमार्गों का विकास नहीं किया जा रहा। कमिटी ने सुझाव दिया कि फिलहाल इन 63 जलमार्गों का विकास न किया जाए क्योंकि यह अव्यावहारिक है।
  • कमिटी ने कहा कि पांच राष्ट्रीय जलमार्ग कुल कार्गो मूवमेंट में 80% का योगदान करते हैं। कमिटी ने कहा कि निम्नलिखित प्रमुख कारण कंपनियों को अंतर्देशीय जलमार्गों का इस्तेमाल करने से हतोत्साहित करते हैं: (i) जलमार्गों के विकास की धीमी गति, (ii) खराब आंतरिक कनेक्टिविटी, और (iii) पोत और उपकरणों की उच्च लागत। कमिटी ने इस प्रवृत्ति में बदलाव को आसान करने के लिए निम्नलिखित प्रमुख उपायों का सुझाव दिया: (i) शिपर्स को वित्तीय प्रोत्साहन, और (ii) टर्मिनलों पर लोडिंग और अनलोडिंग सुविधाओं का विकास।
  • कार्गो मूवमेंट के लिए इंटरमोडल कनेक्टिविटी: कमिटी ने कहा कि प्रमुख बंदरगाहों, रेल और सड़कों के साथ जलमार्गों की कनेक्टिविटी से इन साधनों पर बोझ कम होगा और लॉजिस्टिक्स की लागत कम होगी। कमिटी ने सुझाव दिया कि नए अधिसूचित जलमार्गों के मामले में, रेल, सड़क और बंदरगाहों के साथ कनेक्टिविटी को परियोजना के योजना चरण में ही निपटाया जाना चाहिए।
  • जलमार्गों की कम हिस्सेदारी: भारत के माल ढुलाई में जलमार्गों की औसत हिस्सेदारी लगभग 2% है, जबकि यूएसए के लिए यह आंकड़ा 4%, चीन के लिए 14%, वियतनाम के लिए 48% और नीदरलैंड्स के लिए 49% है। भारत का लक्ष्य 2030 तक मोडल शेयर को 5% तक बढ़ाना है। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय एक कार्य योजना बनाए ताकि एक स्थायी पारगमन विकल्प और पर्यटन उत्पाद के रूप में जलमार्गों की क्षमता का दोहन किया जा सके।
  • पर्यावरण पर प्रभाव: कमिटी ने कहा कि भले ही परिचालन के दौरान अंतर्देशीय जलमार्गों का पर्यावरणीय प्रभाव कम होता है लेकिन उनका विकास नदी की पारिस्थितिकी को बदल देता है। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय जलमार्ग-I पर ड्रेजिंग और निर्माण ने गंगा डॉल्फिन की गतिविधियों में रुकावट पैदा की। कमिटी ने सुझाव दिया कि आईडब्ल्यूएआई को राष्ट्रीय जलमार्गों के विकास से पहले पर्यावरण अध्ययन करना चाहिए।
  • जलमार्गों के इर्द-गिर्द पर्यटन: लगभग 14,500 किमी के अंतर्देशीय जलमार्गों के विस्तार के साथ, पर्यटन स्थलों के रूप में उनके विकास की संभावनाएं मौजूद हैं। कमिटी ने पर्यटन मंत्रालय और राज्य सरकारों के समन्वय से जलमार्गों के इर्द-गिर्द पर्यटन स्थलों को विकसित करने के लिए एक व्यवस्था तैयार करने का सुझाव दिया। इसमें उत्तर पूर्वी क्षेत्र, कदियाम के क्षेत्रों सहित बकिंघम नहर और केरल के बैकवाटर आदि पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। कमिटी ने ऑपरेटरों को प्रोत्साहित करने और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए गंगा विलास जैसे रिवर क्रूज ऑपरेशंस शुरू करने का भी सुझाव दिया। इसके अतिरिक्त कमिटी ने कोच्चि वॉटर मेट्रो जैसी सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों में जलमार्गों के एकीकरण का सुझाव दिया।
  • दुर्घटनाओं में बढ़ोतरी: कमिटी ने कहा कि पिछले दो वर्षों में नावों के पलटने के कारण दुर्घटनाओं में वृद्धि देखी गई है। इन दुर्घटनाओं के निम्न कारण हैं: (i) यात्रियों का अत्यधिक भार, (ii) जहाजों की खराब क्वालिटी, और (iii) वजन का उचित वितरण न होने के कारण असंतुलन। कमिटी ने सुझाव दिया कि आईडब्ल्यूएआई सुरक्षित नेविगेशन और चेतावनी प्रणालियों को उचित तरीके से लागू करने के लिए क्षेत्रीय, राज्य और स्थानीय स्तरों पर ऑब्जरवेशनल नेटवर्क सुविधाएं स्थापित करे।
  • डिजिटल पहल: कमिटी ने सुरक्षित नेविगेशन और यातायात प्रबंधन के लिए नदी सूचना सेवाओं जैसी डिजिटल पहल का उल्लेख किया। उसने सुझाव दिया कि आईडब्ल्यूएआई को ऐसे छोटे ऑपरेटरों की मदद के लिए एक मोबाइल एप्लिकेशन विकसित करना चाहिए जो अधिक परिष्कृत सिस्टम को वहन न कर पाते हों।

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (“पीआरएस”) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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