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  • मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र

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मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • कृषि, पशुपालन एवं खाद्य प्रसंस्करण से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री चरणजीत सिंह चन्नी) ने 20 अगस्त, 2025 को 'मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की पहल' पर अपनी रिपोर्ट पेश की। कमिटी ने कहा कि 2013-14 और 2023-24 के बीच खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की तुलना में अधिक वार्षिक औसत वृद्धि दर से बढ़ा है। कमिटी ने यह भी कहा कि यह उद्योग देश में संगठित मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में सबसे बड़े नियोक्ताओं में से एक है। इस क्षेत्र के लिए मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत कई पहल की गई हैं। कमिटी के प्रमुख निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
  • खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के लिए वित्तपोषण: कमिटी ने कहा कि सरकारी अनुमोदन के माध्यम से 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नीति इस क्षेत्र के विकास का प्रमुख प्रेरक रही है। हालांकि कमिटी ने पिछले तीन वर्षों में एफडीआई में कमी या गिरावट का प्रमुख कारण भू-राजनीतिक अनिश्चितता को बताया। कमिटी ने सुझाव दिया कि सरकार विदेशी कंपनियों द्वारा निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए एफडीआई अनुमोदन प्रक्रिया में तेजी लाए। कमिटी ने यह भी सुझाव दिया कि प्राथमिकता क्षेत्र ऋण योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण प्रवाह का मूल्यांकन एक प्रभाव मूल्यांकन अध्ययन के माध्यम से किया जाना चाहिए।
  • प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों के औपचारिकीकरण योजना के तहत, लाभार्थियों को ऋण-संबंधी सबसिडी दी जाती है। कमिटी ने कहा कि राज्य सरकारों द्वारा सबसिडी जारी करने में देरी के कारण इस योजना के तहत लाभार्थियों द्वारा लिए गए ऋण में कमी आई है। उसने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) मंत्रालय सबसिडी और मंजूरी संबंधी मुद्दों को सुलझाने के लिए ऋणदाता संस्थानों और राज्यों के साथ बातचीत करे, (ii) वार्षिक औपचारिकीकरण लक्ष्य निर्धारित करे, और (iii) खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों के औपचारिकीकरण को अधिकतम करने के लिए नियमित निगरानी और मूल्यांकन करे।
  • विशेष खाद्य प्रसंस्करण निधि का उपयोग: 2014-15 में 2,000 करोड़ रुपए की एक विशेष खाद्य प्रसंस्करण निधि स्थापित की गई थी। इस निधि का उद्देश्य खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को मेगा फूड पार्क स्थापित करने के लिए किफायती ऋण उपलब्ध कराना था। कमिटी ने कहा कि मार्च 2025 तक निधि में से केवल 830 करोड़ रुपए (कुल निधि मूल्य का 42%) ही वितरित किए गए थे। इसलिए कमिटी ने निम्नलिखित पर जानकारी मांगी: (i) निधि के अंतर्गत कम स्वीकृतियां और संवितरण, (ii) मेगा और औद्योगिक फूड पार्कों और कृषि प्रसंस्करण समूहों द्वारा लिए गए ऋणों का पुनर्भुगतान, (iii) उधारकर्ताओं की सहमत गुणवत्ता और मात्रा के अनुसार उत्पादन करने की परिचालन क्षमता।
  • कारोबारी सुगमता: कमिटी ने कहा कि भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआओई) के अंतर्गत प्रक्रियात्मक नियमों में बदलाव और औद्योगिक (विकास एवं रेगुलेशन) एक्ट, 1951 के अंतर्गत लाइसेंसिंग से छूट ने खाद्य प्रसंस्करण व्यवसायों पर अनुपालन संबंधी बोझ को कम करने में मदद की है। कमिटी ने सभी संबंधित प्राधिकरणों को नेशनल सिंगल विंडो सिस्टम में एकीकृत करने का सुझाव दिया। इससे एक ही मंच पर विभिन्न प्राधिकरणों से वैधानिक अनुमोदन और मंज़ूरी प्राप्त करना आसान हो जाएगा। कमिटी ने यह भी सुझाव दिया कि खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर एमएसएमई की भागीदारी को बढ़ावा दे।
  • खाद्य सुरक्षा: कमिटी ने खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) एफएसएसएआई खाद्य सुरक्षा अनुपालन बढ़ाने के अपने प्रयासों को बढ़ाए, (ii) पर्याप्त कर्मचारियों की उपलब्धता सुनिश्चित करे और उन्हें क्षमता निर्माण प्रशिक्षण प्रदान करे, और (iii) मिलावट करने वाली और नियमों का अनुपालन न करने वाली इकाइयों और कारखानों के स्थान पर केवल व्यक्तियों को ब्लैक लिस्ट में डालने पर विचार करे। इसके अतिरिक्त कमिटी ने प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना के तहत सभी 36 लंबित खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाओं को प्राथमिकता के आधार पर पूरा करने का सुझाव दिया। कमिटी ने मौजूदा प्रयोगशालाओं को उन्नत करने और उच्च खाद्य प्रसंस्करण क्षमता वाले क्षेत्रों में प्रयोगशालाएं स्थापित करने का भी सुझाव दिया।
  • पैदावर के बाद होने वाला नुकसान: कमिटी ने कहा कि इस क्षेत्र में सरकारी खर्च से पैदावार के बाद होने वाले नुकसान को कम करने की क्षमता है। इस समस्या के समाधान के लिए कमिटी ने भारत में पैदावर बाद होने वाले नुकसान का आकलन करने हेतु एक अपडेटेड अध्ययन करने का सुझाव दिया। इसके अतिरिक्त उसने सुझाव दिया कि मंत्रालय को जिलों में पूरी तरह से सरकारी स्वामित्व वाले कोल्ड स्टोरेज, मूल्य-श्रृंखला वाले आधुनिक बुनियादी ढांचे और आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन प्रणालियों की स्थापना पर विचार करना चाहिए।
  • कोल्ड चेन और स्टोरेज की सुविधाएं: कमिटी ने इस क्षेत्र में मेक इन इंडिया पहल के तहत पर्याप्त कोल्ड चेन और स्टोरेज सुविधाओं की कमी को एक प्रमुख समस्या बताया। कमिटी ने मंत्रालय को कम कवरेज वाले क्षेत्रों में संसाधनों के आवंटन को प्राथमिकता देने और उन्नत स्टोरेज तकनीकों को अपनाने को प्रोत्साहित करने का सुझाव दिया। 

 

डिस्क्लेमर: प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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