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मनरेगा के जरिए ग्रामीण रोजगार- मजदूरी दरों और उससे संबंधित अन्य मामलों पर एक अंतर्दृष्टि

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • ग्रामीण विकास और पंचायती राज संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: सुश्री कनिमोझी करुणानिधि) ने 8 फरवरी, 2024 को "महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी एक्ट (मनरेगा) के जरिए ग्रामीण रोजगार- मजदूरी दरों और उससे संबंधित अन्य मामलों पर एक अंतर्दृष्टि" पर रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के मुख्य सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • बजटीय आवंटन में वित्तीय अंतराल: कमिटी ने कहा कि 2023-24 में 98,000 करोड़ रुपए की प्रस्तावित मांग के मुकाबले मनरेगा योजना का बजटीय आवंटन 60,000 करोड़ रुपए था। 2022-23 में संशोधित अनुमान 89,400 करोड़ रुपए था। कमिटी ने कहा कि कम बजटीय आवंटन के कारण मजदूरी और मैटीरियल को समय पर जारी करना मुश्किल होगा। उसने ग्रामीण विकास विभाग (डीओआरडी) को पिछले वर्षों के व्यय के अनुरूप धन की मांग करने का सुझाव दिया। 

  • भुगतान में विलंब: मनरेगा के अनुसार, मजदूरी का भुगतान मस्टर रोल बंद होने के 15 दिनों के भीतर किया जाना चाहिए। कमिटी ने गौर किया कि राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में वेतन और मैटीरियल को जारी करने में देरी हुई। उन्होंने डीओआरडी को निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) भुगतान प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना, और (ii) योजना के तकनीकी रूप से पिछड़े लाभार्थियों के लिए फिजिकल पे स्लिप का उपयोग करना।

  • मजदूरी की दरों में संशोधन: मनरेगा के तहत मजदूरी दरें 2010-11 को आधार वर्ष मानकर कृषि श्रम के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का उपयोग करके अधिसूचित की जाती हैं। ये दरें हर साल संशोधित की जाती हैं। कमिटी ने कहा कि 2010-11 को आधार वर्ष के रूप में उपयोग करना वर्तमान मुद्रास्फीति और जीवनयापन की लागत के साथ सुसंगत नहीं है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मजदूरी 221 रुपए और बिहार और झारखंड में 228 रुपए है। न्यूनतम मजदूरी पर केंद्र सरकार की एक समिति ने मनरेगा के तहत मजदूरी 375 रुपए प्रतिदिन करने की सिफारिश की थी। स्टैंडिंग कमिटी ने उसी के अनुरूप मजदूरी दरों को संशोधित करने का सुझाव दिया है।

  • बेरोजगारी भत्ता और लंबित मुआवजा: एक्ट के अनुसार, जिन आवेदकों को आवेदन के 15 दिनों के भीतर रोजगार नहीं मिलता है, वे बेरोजगारी भत्ते के हकदार हैं। कमिटी ने पाया कि बिहार, कर्नाटक और राजस्थान सहित कई राज्यों ने 2018 और 2023 के बीच बेरोजगारी भत्ता नहीं दिया है। मनरेगा लाभार्थियों को 15 दिनों तक मजदूरी का भुगतान न करने पर, मुआवजा भी मिलता है। 2022-23 में 34 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के लिए 94 लाख रुपए के मुआवजे को मंजूरी दी गई, हालांकि केवल 59 लाख रुपए का भुगतान किया गया। 2023-24 में नवंबर 2023 तक स्वीकृत 24 लाख रुपए में से मात्र 2.5 लाख रुपए का भुगतान किया गया। कमिटी ने डीओआरडी को सुझाव दिया कि वह समय पर भुगतान के लिए संबंधित शासी निकायों के साथ काम करे।

  • तकनीकी रुकावटें: नवंबर 2023 तक, 14% जॉब कार्ड होल्डर आधार एनेबल नहीं थे। कमिटी ने कहा कि लाभार्थियों को केवाईसी अनुपालन, बैंक खातों को आधार से जोड़ने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कई लोग राष्ट्रीय मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम पर उपस्थिति दर्ज करने में भी असमर्थ रहे जिसके परिणामस्वरूप उनके द्वारा किए गए काम का भुगतान नहीं हुआ। कमिटी ने कहा कि कई श्रमिकों को इंटरनेट कनेक्टिविटी और स्मार्टफोन की उपलब्धता में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उसने डीओआरडी को मौजूदा प्रणालियों के बारे में जागरूकता पैदा करने और प्रमाणीकरण के वैकल्पिक साधन पेश करने का सुझाव दिया। उसने यह सुझाव भी दिया कि जब तक यह व्यवस्था फुलप्रूफ न बन जाए तब तक आधार अनुपालन को अनिवार्य न बनाया जाए।

  • जॉब कार्ड और कार्य दिवस: कमिटी ने सुझाव दिया कि नकली जॉब कार्ड की समस्या से निपटने के लिए स्मार्ट कार्ड या बायोमेट्रिक कार्ड का उपयोग किया जाए। उसने विकलांग लोगों के लिए एक अलग जॉब कार्ड जारी करने का भी सुझाव दिया। कमिटी ने कहा कि श्रमिकों को प्रोत्साहित करने के लिए कार्य दिवसों की संख्या 100 से बढ़ाकर 150 की जाए। उसके साथ-साथ अन्य योजनाओं के लिए मनरेगा श्रम बल का इस्तेमाल भी किया जा सकता है।

  • सोशल ऑडिट: एक्ट में ग्राम सभाओं के लिए ग्राम पंचायत के भीतर योजना के तहत परियोजनाओं का नियमित सोशल ऑडिट करना अनिवार्य है। कमिटी ने पाया कि 2023-24 में केवल 32% ग्राम पंचायतों का ऑडिट किया गया था। गोवा, अंडमान एवं निकोबार और पुद्दूचेरी जैसे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अभी तक एक भी सोशल ऑडिट युनिट स्थापित नहीं की है। यह भी कहा गया कि राज्यों को प्रशासनिक व्यय के लिए उनका 6% हिस्सा नहीं मिल रहा है। कमिटी ने डीओआरडी को निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) सोशल ऑडिट युनिट्स की स्वतंत्र स्थापना और कामकाज सुनिश्चित करना, (ii) ऑडिट रिपोर्ट सार्वजनिक रूप से प्रकाशित करना, और (iii) ऑडिट इकाइयों को समय पर धन जारी करना सुनिश्चित करना।

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (“पीआरएस”) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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