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भारत में पवन ऊर्जा का मूल्यांकन

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • ऊर्जा संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री राजीव रंजन सिंह) ने 2 अगस्त, 2022 को ‘भारत में पवन ऊर्जा का मूल्यांकन’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
  • पवन ऊर्जा की क्षमता: कमिटी ने गौर किया कि देश में पवन ऊर्जा क्षमता के बहुत छोटे से हिस्से का दोहन किया गया है। भारत में पवन ऊर्जा की वाणिज्यिक दोहन योग्य क्षमता 200 गीगावॉट (GW) से अधिक अनुमानित है। मई 2022 तक पवन ऊर्जा की कुल स्थापित क्षमता 41 गीगावॉट थी जोकि वाणिज्यिक दोहन योग्य क्षमता का लगभग 20% है। क्षमता वृद्धि की धीमी रफ्तार के कारणों में निम्नलिखित शामिल है: (i) शुल्क प्रणाली को फीड-इन-टैरिफ (उत्पादकों को बाजार भाव से अधिक की गारंटी) से बदलकर प्रतिस्पर्धात्मक नीलामी के जरिए शुल्क निर्धारण करना, और (ii) डेवलपर्स द्वारा आक्रामक बोली लगाना। कमिटी ने कहा कि पवन ऊर्जा से ज्यादा सौर ऊर्जा को तरजीह दी जाती है, इसके बावजूद कि सौर ऊर्जा क्षेत्र आयात पर निर्भर है। मार्च 2014 से मई 2022 तक पवन ऊर्जा की स्थापित क्षमता में 93% और सौर ऊर्जा में 2064% की बढ़ोतरी हुई। कमिटी ने कहा कि भारत के पवन ऊर्जा क्षेत्र में घरेलू निर्माण काफी अधिक है।
  • पुरानी टर्बाइन्स की रीपावरिंग: कमिटी ने कहा कि भारत में अधिकतर पवन ऊर्जा क्षमता आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक और मध्य प्रदेश सहित आठ राज्यों में है। पवन ऊर्जा क्षमता वाले ज्यादातर राज्यों में दोहन किया जा चुका है। इस संबंध में कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) पुरानी और कम असरदार टर्बाइन्स को उन्नत टर्बाइन्स से बदलना, और (ii) पुरानी टर्बाइन्स को रीपावर करने की नीति तैयार करना और पुरानी टर्बाइन्स को रीसाइकिल करने के लिए दिशानिर्देश जारी करना। 
  • शुल्क प्रणाली में बदलाव: 2017 तक पवन ऊर्जा क्षमता में वृद्धि फीड-इन-टैरिफ प्रणाली (उत्पादकों को बाजार भाव से अधिक की गारंटी) के जरिए की जाती थी और इसके बाद इसे प्रतिस्पर्धात्मक बोली के जरिए शुल्क निर्धारण में बदल दिया गया। इस बदलाव से परियोजनाओं को स्थापित करने में रुकावट आई है। 4-5 रुपए प्रति यूनिट के अपेक्षाकृत उच्च शुल्क से 2.5-3 रुपए प्रति यूनिट के अधिक प्रतिस्पर्धी शुल्क में परिवर्तन हुआ है। इससे पवन ऊर्जा परियोजनाओं में लाभपरकता कम हो गई। कमिटी ने कहा कि नीलामी की प्रणाली के तहत पवन ऊर्जा परियोजनाओं का आकार बढ़ गया है और ये बड़े स्वतंत्र बिजली उत्पादकों/डेवलपर्स को दिए जाते हैं। कुछ डेवलपर्स आक्रामक बोली का सहारा लेते हैं, इस प्रकार कीमतों को अस्थिर और कम कर देते हैं और आखिरकार परियोजना से बाहर हो जाते हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि एकतरफा तरीके से बाहर होने वाले डेवलपर्स पर भारी जुर्माना लगाया जाए और लगातार डीफॉल्ट करने वालों को ब्लैकलिस्ट किया जाए।
  • सौर-पवन हाइब्रिड परियोजना: राष्ट्रीय पवन सौर हाइब्रिड नीति, 2018 में ग्रिड से जुड़ी बड़ी पवन-सौर परियोजनाओं को बढ़ावा देने का प्रावधान है। 4,250 मेगावॉट (MW) की क्षमता वाली पवन-सौर हाइब्रिड परियोजनाओं को सौंपा जा चुका है जिसमें से 201 MW को फरवरी 2022 में कमीशन किया गया है। कमिटी ने कहा कि पवन और सौर ऊर्जा एक दूसरे की पूरक हैं, चूंकि सौर ऊर्जा का इस्तेमाल दिन में किया जाता है और पवन ऊर्जा परियोजनाएं रात के समय उपयोगी होती हैं। उसने सुझाव दिया कि 50 GW से अधिक की स्थापित क्षमता का दोहन करने के लिए पवन-सौर हाइब्रिड परियोजनाओं की स्थापना को बढ़ावा दिया जाए।
  • वितरण कंपनियों के भुगतान न करने पर: नवंबर 2021 तक भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी ने लगभग 600 करोड़ रुपए के नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीए) के साथ 746 पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिए 18,620 करोड़ रुपए मूल्य के ऋण संवितरित किए थे। कमिटी ने गौर किया कि एनपीए की एक वजह यह है कि वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स) ने अपने बकाये का भुगतान नहीं किया है। मार्च 2022 तक पवन ऊर्जा के डेवलपर्स को 14,247 करोड़ रुपए का भुगतान समय बीत जाने के बाद भी नहीं किया गया था।
  • अक्षय ऊर्जा खरीद दायित्व (आरपीओ): शुल्क नीति, 2016 में यह अपेक्षित है कि डिस्कॉम्स बिजली की एक निश्चित मात्रा अक्षय ऊर्जा (आरई) स्रोतों से खरीदें। डिस्कॉम अपना आरई प्लांट लगाकर आरपीओ के लक्ष्य को पूरा कर सकती है, किसी आरई उत्पादक से बिजली खरीद सकती है या अक्षय ऊर्जा सर्टिफिकेट्स खरीद सकती है। कमिटी ने कहा कि 2020-21 की राष्ट्रीय आरपीओ ट्राजेक्टरी के अनुसार सिर्फ चार राज्यों- हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु ने अपना 19% आरपीओ लक्ष्य हासिल किया है। उसने सुझाव दिया कि सभी राज्यों द्वारा आरपीओ अनुपालन सुनिश्चित किया जाए और डीफॉल्ट करने वाली संस्थाओं पर जुर्माना लगाया जाए।
  • अपतटीय पवन ऊर्जा: कमिटी ने कहा कि गुजरात और तमिलनाडु में तटों पर लगभग 70 GW अपतटीय पवन ऊर्जा (जलाशयों में पवन ऊर्जा परियोजनाएं) अनुमानित थी। हालांकि इन राज्यों में कोई परियोजना नहीं लगाई गई। अपतटीय पवन ऊर्जा में तटवर्ती परियोजनाओं की तुलना में अधिक क्षमता उपयोग कारक (सीयूएफ) है और स्थापित क्षमता में वृद्धि के साथ इसकी लागत घटती है। कमिटी ने भारत के विभिन्न तटीय क्षेत्रों में अपतटीय पवन ऊर्जा क्षमता की खोज करने का सुझाव दिया। 
 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (“पीआरएस”) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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