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बिजली शुल्क नीति की समीक्षा

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • ऊर्जा संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री राजीव रंजन सिंह) ने 2 अगस्त, 2022 को “बिजली शुल्क नीति की समीक्षा- देश भर में एकरूपता की जरूरत” पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं:
  • शुल्क का पुनर्गठन: कमिटी ने कहा कि देश भर में वर्तमान में या एक साथ शुल्क में एकरूपता लाना बहुत मुश्किल होगा। उसने कहा कि उत्पादन, ट्रांसमिशन और वितरण की भिन्न-भिन्न लागत के कारण बिजली की आपूर्ति की लागत अलग-अलग है। राज्यों को इस बात का अधिकार दिया गया है कि वे उपभोक्ताओं की विभिन्न श्रेणियों के लिए शुल्क निर्धारित कर सकते हैं। बहुत से राज्यों ने सामाजिक-आर्थिक कारकों के आधार पर शुल्क की बहुत अधिक श्रेणियां बनाई हैं (93 तक)। कमिटी ने कहा कि शुल्क की मौजूदा संरचना विविध और जटिल है और बिजली शुल्क के विभिन्न कारकों को पुनर्गठित करना जरूरी है। उसने केंद्र सरकार को सुझाव दिया कि वह शुल्क संरचना को सरल बनाने के लिए राज्यों के साथ काम करे। 
  • पावर परचेज एग्रीमेंट्स (पीपीएज़): बिजली खरीद की लागत वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स) के लिए आपूर्ति की लागत का एक बड़ा हिस्सा है। बिजली की लगभग 90% मांग उत्पादकों और डिस्कॉम्स के बीच के दीर्घकालीन द्विपक्षीय अनुबंध, जिसे पीपीएज़ कहा जाता है, के जरिए पूरी की जाती है। कमिटी ने पाया कि डिस्कॉम्स ने मौजूदा बाजार कीमतों की तुलना में अधिक कीमत पर पीपीए पर हस्ताक्षर किए हैं। इसका उनके वित्तीय प्रदर्शन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। उसने पीपीए की लागत को पुनर्गठित करने का सुझाव दिया। हालांकि यह भी कहा गया कि पीपीए पर फिर से बातचीत करना, जब तक कि पार्टियों द्वारा पारस्परिक रूप से तय नहीं किया जाता है, अपेक्षित नहीं है क्योंकि इससे भविष्य के निवेश पर प्रतिकूल असर हो सकता है।
  • निर्धारित लागत का भुगतान: डिस्कॉम्स दो हिस्सों में उत्पादकों को भुगतान करते हैं: (i) निश्चित शुल्क, जोकि पूंजीगत निवेश को दर्शाता है, और (ii) उत्पादन के लिए ईंधन की लागत सहित परिवर्तनशील शुल्क। कमिटी ने कहा कि 2020-21 में कोयला और लिग्नाइट आधारित संयंत्रों में क्षमता उपयोग 53% था। संयंत्र का उपयोग न होने के बावजूद डिस्कॉम्स को निश्चित लागत के रूप में एक बड़ी राशि का भुगतान करना पड़ता है। यह लागत अंततः अंतिम उपभोक्ता को चुकानी पड़ती है क्योंकि इसे वहां तक पास कर दिया जाता है। हालांकि, वितरण शुल्क स्तर पर निश्चित लागत की वसूली पूरी तरह से नहीं की जा रही है। कमिटी ने सरकार को सुझाव दिया कि डिस्कॉम के बोझ को कम करने के रास्ते तलाशे जाने चाहिए। 
  • पावर एक्सचेंज: कमिटी ने कहा कि पावर एक्सचेंज देश भर में एक समान शुल्क को लागू करने में मदद कर सकते हैं। हालांकि एक्सचेंज के जरिए ;खरीदी गई वर्तमान बिजली कुल उत्पादित बिजली के 5% से कम है, क्योंकि अधिकांश मांग लंबी अवधि के पीपीए के माध्यम से पूरी की जाती है। कमिटी ने केंद्र सरकार को निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) पावर एक्सचेंज सिस्टम विकसित करना, (ii) एकाधिकार से बचने के लिए कई एक्सचेंजों की उपलब्धता सुनिश्चित करना, और (iii) कदाचार को रोकने के लिए नियम बनाना।
  • क्रॉस सबसिडी: क्रॉस सबसिडी उस शुल्क प्रबंधन को कहा जाता है जिसमें उपभोक्ताओं की एक श्रेणी अपेक्षाकृत उच्च शुल्क चुकाती है ताकि उपभोक्ताओं की दूसरी श्रेणी की खपत को सबसिडाइज किया जा सके। शुल्क नीति में यह अपेक्षित है कि सभी उपभोक्ता श्रेणियों के लिए शुल्क, उन्हें आपूर्ति की औसत लागत के ±20% के भीतर लाया जाए। कमिटी ने कहा कि एक बैंड में क्रॉस सबसिडी की सीमा तय की जाए। इसके अतिरिक्त ऐसा सिस्टम अपनाया जाए जहां आधार शुल्क सभी श्रेणियों के लिए आपूर्ति की औसत लागत हो और शुल्क निर्धारण में पारदर्शिता के लिए ±20% को लागू किया जाए। उसने यह सुझाव भी दिया कि उपभोक्ताओं को सबसिडी के प्रत्यक्ष लाभ अंतरण से क्रॉस सबसिडी अधिक केंद्रित और प्रभावी बनेगी।
  • एटी एंड सी घाटे में कमी: 2018-19 में एग्रिगेट टेक्निकल एंड कमर्शियल (एटी एंड सी) घाटा 22% था। कुछ राज्यों में यह घाटा 60% जितना अधिक था। डिस्कॉम को आपूर्ति की जाने वाली बिजली के जितने अनुपात का भुगतान नहीं किया जाता, उसे एटी एंड सी घाटा कहा जाता है। कमिटी ने कहा कि इन घाटों की प्रकृति आम तौर पर वाणिज्यिक होती है और इन्हें प्रशासनिक पहल के जरिए कम किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त उसने कहा कि अगर एटी एंड सी घाटे को घटाकर आधा कर दिया जाता, तो डिस्कॉम्स को चलाना आर्थिक रूप से व्यावहारिक होता।
  • एनर्जी मिक्स का अधिक से अधिक इस्तेमाल: कमिटी ने कहा कि सभी स्रोतों से स्थापित क्षमता लगभग 389 GW है जबकि अधिकतम मांग लगभग 170 गीगावॉट है। कोयला और लिग्नाइट आधारित संयंत्र का क्षमता उपयोग गिरकर लगभग 53% हो गया है। सौर सहित अक्षय ऊर्जा को ‘मस्ट रन’ दर्जा मिला हुआ है, जिससे डिस्कॉम्स को अक्षय ऊर्जा को समायोजित करने के लिए परंपरागत बिजली को सरेंडर करना पड़ता है। हालांकि अक्षय ऊर्जा की प्रकृति अनिरंतर है, इसलिए ग्रिड की स्थिरता के लिए यह जरूरी है कि दूसरे स्रोतों से बिजली संतुलित की जाए। कमिटी ने एक एक्सपर्ट कमिटी के गठन का सुझाव दिया। यह कमिटी केंद्रीय स्तर पर बिजली की पूलिंग की समीक्षा करे ताकि एनर्जी का एक उपयुक्त मिश्रण और सभी राज्यों को एक समान दर पर बिजली का प्रावधान सुनिश्चित किया जा सके। 


 अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (“पीआरएस”) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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