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कानूनी शिक्षा को मजबूत करना

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • कार्मिक, लोक शिकायत, कानून एवं न्याय संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री सुशील कुमार मोदी) ने 7 फरवरी, 2024 को 'कानूनी पेशे के सामने उभरती चुनौतियों के मद्देनजर कानूनी शिक्षा को मजबूत करना' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। एडवोकेट्स एक्ट, 1961 के अनुसार, भारतीय बार काउंसिल निम्नलिखित के लिए जिम्मेदार है: (i) कानूनी शिक्षा के मानकों को रेगुलेट करना, (ii) कानून में डिग्री प्रदान करने वाले विश्वविद्यालयों को मान्यता देना, और (iii) निर्धारित मानकों के अनुपालन के लिए इन विश्वविद्यालयों का निरीक्षण करना। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • भारतीय बार काउंसिल (बीसीआई) की शक्तियां: कमिटी ने कहा कि एडवोकेट्स एक्ट, 1961 अदालतों के लिए वकील तैयार करने के एक संकीर्ण दृष्टिकोण के साथ पारित किया गया था। उसने कहा कि कानूनी शिक्षा को अदालती कक्षों से परे कानूनी प्रैक्टिस का आवश्यक कौशल प्रदान करना चाहिए। कमिटी ने सुझाव दिया कि बीसीआई की शक्तियां बार में प्रैक्टिस की बुनियादी पात्रता को रेगुलेट करने तक सीमित होनी चाहिए। इससे परे कानूनी शिक्षा का रेगुलेशन एक स्वतंत्र प्राधिकरण को सौंपा जाना चाहिए। उसने सुझाव दिया कि भारत के प्रस्तावित उच्च शिक्षा आयोग के तहत एक राष्ट्रीय कानूनी शिक्षा और अनुसंधान परिषद की स्थापना की जाए।

  • कमिटी ने कहा कि बीसीआई द्वारा निरीक्षण प्रक्रिया की अक्षमता और अपर्याप्तता के कारण घटिया लॉ कॉलेजों को मान्यता मिली है। कमिटी ने यह भी कहा कि नए कॉलेजों को मान्यता देते समय मात्रा से अधिक गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाना चाहिए। उसने घटिया लॉ कॉलेजों की बढ़ती संख्या को रोकने के लिए प्रभावी उपाय करने का सुझाव दिया।

  • एक समान पाठ्यक्रम: कमिटी ने कहा कि लॉ कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के बीच पाठ्यक्रम में अंतर से असमानता पैदा होती है। ये मतभेद लॉ कॉलेजों और विश्वविद्यालयों द्वारा संबद्ध विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम को अपनाने और बीसीआई द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम को मंजूर न करने के कारण उत्पन्न होते हैं। कमिटी ने बीसीआई की भूमिका को फिर से परिभाषित करने और यह सुनिश्चित करने का सुझाव दिया कि बीसीआई कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में स्नातक पाठ्यक्रमों के लिए एक समान पाठ्यक्रम निर्धारित करे। स्नातकोत्तर शिक्षा के लिए प्रस्तावित स्वतंत्र प्राधिकरण द्वारा एक समान पाठ्यक्रम निर्धारित किया जाना चाहिए।

  • अंतरविषयी शिक्षा: कमिटी ने कहा कि कानूनी परिदृश्य तेजी से विकसित हो रहा है। उसने कहा कि कानूनी पाठ्यक्रम को शिक्षार्थियों के सभी पहलुओं और क्षमताओं का विकास करना चाहिए। उसने कानूनी पाठ्यक्रम में कानून और चिकित्सा, खेल कानून, ऊर्जा कानून और साइबर कानून जैसे विषयों को अनिवार्य करने का सुझाव दिया। कमिटी ने यह भी कहा कि सीमा पारीय मुद्दों को सुलझाने की जरूरत है। इसके लिए उसने विभिन्न कानूनों और विषयों, जैसे निजी अंतरराष्ट्रीय कानून को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने का सुझाव दिया। उसने यह सुझाव भी दिया कि अन्य कानूनी प्रणालियों और क्षेत्रों का परिप्रेक्ष्य हासिल करने के लिए एक्सचेंज कार्यक्रमों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

  • व्यावहारिक प्रशिक्षण: कमिटी ने पाठ्यक्रम में मूट कोर्ट जैसे व्यावहारिक प्रशिक्षण को शामिल करने और हर शैक्षणिक वर्ष में दो महीने की इंटर्नशिप अनिवार्य करने का सुझाव दिया। उसने कहा कि सीनियर्स के साथ इंटर्नशिप करने वाले विद्यार्थियों को वजीफा दिया जाना चाहिए और उनके लॉजिस्टिक खर्चों को कवर किया जाना चाहिए।

  • आरक्षण को लागू करना: कमिटी ने कहा कि देश की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज़ एससी, एसटी और ओबीसी श्रेणियों के विद्यार्थियों के लिए प्रवेश में आरक्षण को ठीक से लागू नहीं कर रही हैं। उसने जोर दिया कि प्रवेश और भर्ती में आरक्षण का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। उसने बीसीआई को सुझाव दिया कि वह लॉ यूनिवर्सिटीज़ में आरक्षण के क्रियान्वयन की निगरानी करे और अगर वे संबंधित नियमों का पालन न करें तो उनकी मान्यता रद्द कर दी जाए।

  • कानूनी शोध: कमिटी ने कहा कि कानूनी ज्ञान और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए कानूनी शिक्षा में शोध को प्राथमिकता और प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। उसने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) फैकेल्टी के शोध में सहायता देने हेतु डेडिकेटेड संसाधन, (ii) शोध के लिए उचित सुविधाएं देना, और (iii) वकीलों और वकालत के विद्यार्थियों के कम्युनिकेशन और अनुसंधान कौशल को बढ़ाने के लिए कार्यक्रम विकसित करना।

  • तकनीक: कमिटी ने लॉ ग्रैजुएट्स को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ब्लॉकचेन जैसी उभरती तकनीकों से परिचित कराने का सुझाव दिया। उसने सुझाव दिया कि बीसीआई को कानूनी शिक्षा में तकनीक को एकीकृत करने के लिए दिशानिर्देश पेश करने चाहिए।

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (“पीआरएस”) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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